ख़तरे का निशान By Nazm << आईने से झाँकती नज़्म अपने दरिया की प्यास >> दाएरों में चलते चलते हम कहाँ तक आ गए ऊँघते ही ऊँघते ख़्वाब-ए-गिराँ तक आ गए गहरे पानी में उतर कर पार होने के बजाए डरते डरते अब तो ख़तरे के निशाँ तक आ गए Share on: