ख़ौफ़ से मेरे लब आसमाँ की तरह नीले आँखें पर्बत की मानिंद बे-जान हैं ये कैलन्डर इस को छुपा दो कहीं इस घड़ी को कहीं दफ़्न कर दो ये टिक-टिक मेरे कान में रेल की चीख़ बनने लगी है मेरी साँसों से काला धुआँ सा निकलता है मैं कहाँ जा रहा हूँ ये सूरज की इंजन में दहके हुए कोएले हैं सय्यारे पहियों के मानिंद लुढ़के चले जा रहे हैं कहाँ वक़्त रेल की पटरियों से फिसल कर नीचे गिरने को है