मैं कर्ब में मुब्तला थी ज़िंदगी की अज़िय्यतों से दो-चार ज़िंदगी के फ़ासले और मौत के क़रीब मैं अपनी रगों की क़ैदी अपने दुखों के हिसार में थी ज़िंदगी से दूर होती रही थी कि मेरे जिस्म में एक तनाव हुआ और देखते ही देखते वो मेरे जिस्म का एक हिस्सा बन गया मेरी पहचान मेरे प्यार की तख़्लीक़ मेरे ख़ून का वजूद मुझ में तहलील हो गया मैं ज़िंदा हूँ मैं निखर गई और वो मेरी ज़िंदगी में बिखर गई मेरे प्यार की ख़ुशबू मेरी बेटी जो मेरा दूसरा जनम है