ख़ुश्बू का बदन By Nazm << ख़्वाब का दरख़्त ख़ौफ़ >> फ़र्श बिखरा हुआ उस का लिबास रात की हर एक करवट उस की बाँहों छातियों उस की कमर की सिलवटों में अब भी जीती जागती है सरसराती साँस लेती है यहाँ एक पागल सुर्ख़ ख़ुश्बू का लिबास मेरी तन्हाई को फिर से ढाँपता है Share on: