उस ने ख़्वाहिश की तो वो ज़ाहिर हुआ रंग तारीकी से निकले और सदा देने लगे साया साया हो गई काली गुफा की तीरगी और हर मंज़र नुमायाँ हो गया मैं भी था इक रौशनी और तीरगी के दरमियाँ मुझ को भी ज़ालिम हवा ने डस लिया और मैं भी ज़िंदगी की आग में जलते लगा ख़ाक-ओ-ख़ूँ के रंग में ढलने लगा उस ने ख़्वाहिश की तो उस को मौत के साए मिले मैं ने ख़्वाहिश की तो मुझ को जिस्म का मक़्तल मिला