ख़्वाब इक परिंदा है आँख के क़फ़स में ये जब तलक मुक़य्यद है अक्स बन के ज़िंदा है ख़्वाब इक परिंदा है ख़्वाब इक परिंदा है ज़र्द मौसमों में भी ख़ुश-गवार यादों को ताज़ा-कार रखता है आने वाले मौसम के गीत गुनगुनाता है शाख़ शाख़ पर महके फूल चुन के लाता है और फिर हवा के दोश ख़ुशबुओं का साथी है ख़्वाब इक परिंदा है ख़्वाब इक परिंदा है ज़ीस्त के समुंदर में ख़्वाहिशें जज़ीरा हैं और इस जज़ीरे में ख़ौफ़ का अंधेरा है और इस अँधेरे में ख़्वाब सा परिंदा है सुब्ह का सितारा है दिन का इस्तिआरा है