अपनी जवानी में बिखरी हुई क़ौस-ए-क़ुज़ह ग़ुरूर में फूले हुए फूल अहराम-ए-मिस्र या एक ख़ूबसूरत महबूबा के अंदर एक हाकिम पनपता है हर दौर में एक चालाक शख़्स ज़रूर होना चाहिए जो लोगों को बद-सूरती से डरा कर महज़ूज़ होता रहे अब मैं ख़ूब-सूरती के लिए क्या लिखूँ यही कि तख़लीक़ी मैलान से ज़रा पहले और बहुत देर तक बा'द में सिर्फ़ एक हसीन ख़्वाब होता है