क़ाफ़िलों से कहो रहबरों से कहो रास्तों से कहो मंज़िलों से कहो साहिलों से फ़ज़ाओं से सब से कहो और गुज़रे तो बाद-ए-सबा से कहो मैं नहीं आउँगा मैं नहीं आउँगा फिक्र-ओ-एहसास की वादियों में कभी भूल कर उन के साए तले ठंडी ठंडी घनी छाँव में बैठ कर कोई मुझ को न आवाज़ दे मेरा कोई नहीं कोई भी तो नहीं ज़ीस्त का ज़ीस्त पर ख़ुद मैं इक बोझ हूँ मुझ को आवाज़ मत दे मिरे हम-नफ़स मैं हक़ीक़त में कुछ भी नहीं एक हर्फ़-ए-ग़लत लौह-ए-दिल पर हूँ मैं जल्द मिट जाऊँगा ख़्वाब हूँ इक परेशान सा ख़्वाब हूँ ख़्वाब की तरह कोई लम्हे में टूट जाऊँगा बिखर जाऊँगा मुझ को आवाज़ न दे मिरे हम-नफ़स