माँ फ़क़त इक लफ़्ज़ है वैसे तो लेकिन मगर माँ क्या है ममता का समुंदर तक़द्दुस प्यार की बहती नदी है वफ़ा ईसार क़ुर्बानी का जीता जागता पैकर वजूद इस का हिमाला से भी ऊँचा वजूद इस का है रहमत वजूद इस का है रहमत सरों पे इस का साया हज़ारों ने'मतों की एक ने'मत जब भी लब इस के खुले बिगड़ी बना दे दुआ इस की मुसीबत को टला दे पुकारे जब लो सारा अर्श हिला दे वजूद इस का सरापा आफ़ियत है ख़ुदा ने इस की यूँ अज़्मत बढ़ाई है इस के पाँव के नीचे ही जन्नत