मेरे हमराज़ ऐ मिरे हमदम मेरे साथी मिरे शरीक-ए-सफ़र इस क़दर क्यों निढाल हो बोलो इस क़दर क्यों उदास हो बोलो तुम ने ख़्वाबों से रिश्ता क्यों तोड़ा और आँखें थकन से चूर हैं क्यों क्यों क़दम रुक गए मिरे साथी है सफ़र तो अभी बहुत बाक़ी और मंज़िल बहुत है दूर अभी कुछ बताओ कि क्यों ख़मोश हो तुम क्यों भटकने लगे ख़यालों में ये न समझो कि दुख तुम्हारा है ये न सोचो कि तुम अकेले हो हर क़दम पर तुम्हारे साथ हूँ मैं लाओ दे दो तुम अपने दुख सारे मैं तुम्हारे ग़मों को प्यार करूँ और तलवों के आबलों को भी अपने अश्कों से ख़ुद मैं साफ़ करूँ जितने काँटे चुभें हैं चुन लूँ मैं फिर कोई ख़्वाब भर दूँ आँखों में ताबनाकी हयात को दे दूँ रस्ते-रस्ते को मुर्ग़-ज़ार करूँ जिस से राहत मिले तुम्हें हमदम जिस से साँसें भी मुश्क-बार बनें फूल होंटों पे मुस्कुरा उट्ठें और उमंगें जवान हों जिस से हौसला तुम को जिस से मिल जाए और आँखें तुम्हारी ख़्वाब बुनें जिस से तुम फ़ासलों को तय कर लो रेग-ज़ारों में मुस्कुरा के चलो राह-ए-मंज़िल में तुम कभी न रुको कि जो मंज़िल पुकारती है तुम्हें वही मंज़िल है मेरी मंज़िल भी मेरी जन्नत तुम्हारी ख़ुशियाँ हैं तुम ने समझा है जिस को ख़ाक-ए-पा वो चमकते हुए सितारे हैं उन सितारों से माँग मैं ने भरी उन सितारों से ज़िंदगी है मिरी उन सितारों से ज़रफ़िशाँ है हयात मेरे लब पर हैं प्यार की सरगम उन से खिलते हैं आरिज़ों पे कँवल उन से आँखों में ख़्वाब पलते हैं जिन से दिन ला-जवाब होते हैं लाओ दे दो तुम अपने दुख सारे मैं तुम्हारे ग़मों को प्यार करूँ हौसला तुम को जिस से मिल जाए और आँखें तुम्हारी ख़्वाब बुनें