ख़्वाहिश से तमन्ना तक By Nazm << मसअला ये नहीं अजनबी किस ख़्वाब की दुनिय... >> लाल पीली नीली नीली और हरी ख़्वाहिशों की जाने कितनी मछलियाँ तैरती रहती हैं मेरे जार में और जब उन में से कोई यक-ब-यक इक तमन्ना बन के बाहर कूदती हैं साफ़-सुथरे फ़र्श पे दम तोड़ती है Share on: