तुम ख़ामोश हवा हो पहाड़ों नदियों दरियाओं से गुज़रते हुए न कोई निशान बनाते हो न कोई अलामत लेकिन तुम्हारी हँसती आँखें मंज़रों का रस कशीद कर लेती हैं और तुम्हारी दाढ़ी जिस के एक एक बाल की चुभन किसी अंजान धरती के उम्र-रसीद सब्ज़े जैसी है जिस ने जाने कितने दरियाओं का पानी पिया है और मैं तुम्हारे संग नाख़ुनों के बल चलती हूँ और हँसती जाती हूँ मुझे ख़बर ही नहीं कि नाख़ुन कब से उँगलियों के अंदर धँस चुके हैं लहूलुहान हैं