ख़याल By Nazm << मुश्किल दीवानगी रहे बाक़ी >> मेज़ की दराज़ से कुछ ढूँडते हुए निगाह किसी के दिए गए पेन पर पड़ी दफ़अ'तन ज़ेहन में ये ख़याल कौंदा कि मेरी लिक्खी हुई डाइरी भी तो उसी के पास होगी ज़िंदगी के सफ़र में हम कितना कुछ एक दूसरे को सौंपते हैं और फिर अजनबी बन जाते हैं Share on: