ख़याल-ए-आबरू अब क्या ख़याल-ए-आबरू भीड़ में आन बैठे अब क्या सवाल-ए-दीद और कैसा हिजाब बस जनाब जाती हवा से किस लिए सर की रिदा बचाइए देखिए मुस्कुराई है एक निगाह-ए-इश्तियाक़ होश में आइए हुज़ूर आप भी मुस्कुराइए देख के याँ बरहना-सर कौन है जो मलूल हो हैफ़ है अब भी शे'र की दाद न गर वसूल हो छोड़ भी दीजिए 'अबीर' काहे की पर्दा-दारियाँ शहर से उठ गईं हुज़ूर पहली सी वज़्अ-दारियां आप भी तो बदल गईं जी मा'ज़रत क़ुबूल हो कोई न साथ रोएगा क्यों सर-ए-आम रोइए शे'र की आबरू गई क्यों न मुदाम रोइए अच्छी लगी तमाश-गाह देखिए ख़त उठाइए रोइए रोए जाइए अब क्या ख़याल-ए-आबरू भीड़ में आन बैठिए