ढेर में ख़ामोश सोए थे वो सब यक-ब-यक जुम्बिश हुई जागे सभी फिर शरारत से हवा में तैरने उड़ने लगे आए थे क्यों और क्यों चले मैं ने कहा पत्ते पत्ते पत्ते हैं इठला के वो कहने लगे हम यहाँ एक ख़ूबसूरत ख़्वाब आँखों में जगाए सो रहे थे कि कोई फ़नकार सुनहरे ज़र्द और भूरे रंगों में ढाल दे हम को कि हर चश्म-ए-बीना के लिए जब कोई आया नहीं जाते हैं हम