मेरी माँ ने मुझे बताया है अगले वक़्तों के साहिबान-ए-दुवल जो ख़ुदावंद की मशिय्यत से उम्र भर ला-वलद रहा करते ये अजब कार-ए-ख़ैर फ़रमाते अपनी दौलत को एक बर्तन में बंद कर के कहीं दबा देते उस पे आटे या चिकनी मिट्टी का साँप ज़ामिन बना के रख देते ताकि आइंदा कोई शख़्स अगर उन की दौलत की सम्त आँख उठाए ये ख़ज़ाने का साँप लहरा कर उस की औलाद भेंट में चाहे लोग औलाद भेंट देते थे और ये माल खोद लेते थे मेरी माँ ने मुझे बताया है मेरे ना-पुख़्ता घर के आँगन में ऐसा ही माल दफ़्न था शायद और ये माल यूँही दफ़्न रहा या किसी और घर में जा पहुँचा मेरी माँ ने मुझे न भेंट दिया और वो माल हाथ से खोया मेरी माँ भी अजीब औरत है अपनी माँ से ये वाक़िआ' सुन कर पहले मुझ को यक़ीं न आता था मैं ने अफ़्साना उस को समझा था पर ये अफ़्साना इक हक़ीक़त था पर ये अफ़्साना इक हक़ीक़त है मैं ने शादाब खेतियाँ देखीं मैं ने मिल देखे बंक भी देखे मैं ने देखा कि माल-ओ-दौलत के हर ख़ज़ाने पे हर जगह हर पल इक न इक साँप बैठा रहता है