वो लम्हे कितने दिलकश थे वो घड़ियाँ कितनी प्यारी थीं जुग जुग की दो प्यासी रूहें बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर अंजान मिलीं इक पेड़ की ठंडी छाँव तले वो वक़्त है अब तक याद मुझे जब जंग के बादल छाए थे दुश्मन सरहद पर आए थे कुछ टैंक तोप भी लाए थे फिर तो वो मुँह की खाए थे भारत के वीर सिपाही से वो वक़्त है अब तक याद मुझे मजबूर-ओ-निहत्ती ये जनता जब माँग रही थी हक़ अपना दाना पानी रोटी कपड़ा ले कर लाठी डंडा भाला मग़रूर सिपाही टूट पड़े वो वक़्त है अब तक याद मुझे जब भूक पली दहक़ानों में जब आग लगी खलियानों में जब माँग बढ़ी सामानों में रू-पोश हुए तह-ख़ानों में बक़्क़ाल के सारे भाग खुले वो वक़्त है अब तक याद मुझे जीने का हर इक सामान बिका अफ़्लास-ज़दा इंसान बिका कौड़ी कौड़ी ईमान बिका सस्ते दामों अभिमान बिका फिर पाप के चश्मे फूट पड़े वो वक़्त है अब तक याद मुझे