मैं उस इंसान से वाक़िफ़ हूँ जिस ने मदीने की ज़मीन-ए-पाक से कुछ ख़ाक ला कर बनाई थीं कन्हैया की शबीहें राम और लछमन की तस्वीरें सर-ए-चश्म-ए-अक़ीदत शिव की मूरत थी कहीं अर्जुन की सूरत जिलौ में इन बुतों के था वहाँ रावन का भी पैकर वो गागर जिस में वो कुछ आब-ए-ज़म-ज़म भर के लाया था तबर्रुक की तरह उस ने मिलाया गंगा-जल उस में दिए फिर ग़ुस्ल उस ने इन बुतों को उसी पानी से जिस में रूह की ख़ुशबू महकती थी मोहब्बत गुनगुनाती थी हुआ फिर ये यकायक सारे ही बुत जाग उट्ठे आदमी का रूप ले कर फिर उस के बाद मिरी आँखों ने देखा कि उस की लाश थी और ख़ूनी पंजे देवताओं के