किनारे पर कोई आया था जिस का ख़ाली बजरा डोलता रहता है पानी पर कोई उतरा था बजरे से वो माँझी होगा जिस के पाँव के मद्धम निशाँ अब तक दिखाई दे रहे हैं गीले साहिल पर गया था कहकशाँ के पार ये कह कर अभी आता हूँ ठहरो उस किनारे पर ज़रा मैं देख लूँ क्या है ये बजरा डोलता रहता है इस ठहरे हुए दरिया के पानी पर वो लौटेगा या मैं जाऊँ मुझे उस पार जाना है
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