अंधेरा डाँट कर बोला सुनो सूरज की ऐ नन्ही किरन अब घर चली जाओ तुम्हारी राजधानी पर हुकूमत अब मिरी होगी किरन ने मुस्कुरा कर देव-क़ामत और पुर-हैबत अँधेरे पर नज़र डाली तहम्मुल से यक़ीं और हौसले को भर के अपने नर्म लहजे में कहा देखो चली तो जाऊँगी लेकिन हर इक दिल में रहूँगी इक नई उम्मीद की सूरत हर इक घर में मिलूँगी तुम से लड़ता इक दिया बन कर सितारों से कभी छलकूँगी उन की रौशनी बन कर कभी मैं चाँद से निकलूँगी उस की चाँदनी बन कर सुनो मैं जा के भी मौजूद हूँगी और तुम मौजूद हो कर भी नहीं होगे