ज़िंदगी के नाटक में एक अदाकारा हूँ मैं ये होगा अलमिया या रज़मिया कौन बता सकता है जब पर्दा उठता है मुझे अपना किरदार अदा करना होता है कुछ सोचे-समझे बग़ैर दूसरे अदाकारों के इशारों पर बोलने पड़ते हैं अपने मुकालमे मेरे किरदार हैं बे-शुमार मुख़्तलिफ़ जज़्बात लिए मदद करने के लिए मुझे पस-ए-पर्दा कोई नहीं है क्या मैं ने अपना किरदार सहीह निभाया जो कहना था सही कहा सही ढंग से क्या मैं ना-कामयाब थी क्या सामईन की तालियाँ और नक़्क़ादों की दाद मैं ने हासिल की या फिर सब की नज़रों में गिर गई इन सवालात का वक़्त ही जवाब देगा पर्दा गिरने के बा'द