चाँद है कितना तन्हा सा रात भी कितनी अकेली है रात की तारीकी में खो जाना कितना अच्छा लगता है मैं भी चंद ख़्वाब समेटे रात की गोद में आ बैठी हूँ जागती आँख में सपने समोना कितना अच्छा लगता है तन्हा रात और तन्हा मैं दोनों बातें करते हैं यूँ तन्हाई में बातें करना कितना अच्छा लगता है तारों की झिलमिल जगती फिर सो जाती है इन तारों को तकते रहना कितना अच्छा लगता है दुनिया के फ़रेब मक्कारी से ये बे-जान नज़्ज़ारे बेहतर हैं सब से छुप कर इन में खोना कितना अच्छा लगता है