मेरी पुरानी बोसीदा डायरी के पन्नों पर कुछ पुरानी यादों के साए हैं कुछ पुरानी ग़ज़लें हैं कुछ अधूरी नज़्में हैं सोचती हूँ उन नज़्मों को मुकम्मल कर लूँ फिर सोचती हूँ ये नज़्में तो मेरी मोहब्बत से वाबस्ता हैं और मोहब्बत तुम बिन अधूरी है बताओ तुम ही कैसे इन नज़्मों को कम करूँ कैसे वो अन-कही ग़ज़लें सुनाऊँ तुम्हें कि जिन में तड़प रही है मोहब्बत मचल रही है उल्फ़त तेरी जुस्तुजू तेरी तलाश जारी है ज़िंदगी मुझ पे भारी है सोचती हूँ कहाँ जा के पनाह लूँ वादी-ए-मोहब्बत में या अपनी अधूरी नज़्मों में