सोना सो कर नींद में खोना बंद करो ये बंद करो अपने बचपन को बात बात पर ग़ैरों की शुनवाई में फिर बोना बंद करो तुम लौट कभी न पाओगे उस आसमान की छाँव में तुम वापस कभी न जाओगे अपनी शुनवाई बीनाई को लम्स में आती तन्हाई को फिर से कभी न पाओगे बंद करो तुम गुज़रे उस आँगन की ठंडक इन तलवों में फिर से सहना बंद करो ये सोना सो कर नींद पिरोना बीते शजर के बीजों को अब नींद की मिट्टी में फिर बोना बंद करो इस शजर की छाँव के भीतर तुम लौट कभी न पाओगे और मौत का उजला सूरज तुम को बेदारी में यहाँ जला कर ख़ाक करेगा तलवों की ठंडक को लब को लम्स को भी तन्हा हर शब को बेदारी में यहाँ जला कर ख़ाक करेगा सोना सो कर नींद में खोना बंद करो तुम ख़्वाब की हालत में अब रोना बंद करो तुम लौट कभी न पाओगे