गो मेरे दिल में और उफ़ुक़ की लाली में है रिश्ता प्यार का फिर भी हम रेग-ए-बयाबाँ में इस से मक़्तल के सिवा क्या अपनाएँ ये रेत जिगर गोशे सूरज के जाने कब किस आने वाले आलम में फिर लाला-ओ-गुल बन कर निखरें और दूर उफ़ुक़ की लाली के हम-रंग बनें आज तो मेरे दिल का बस इतना रिश्ता है रंग-ए-शफ़क़ से दोनों रौशन रूप तलब के दोनों ही क़ातिल हैं शब के फिर भी उन में फ़र्क़ बड़ा है दिल नादाँ है दिल-ए-नादाँ तकमील-ए-तमन्ना की बातें आग़ाज़-ए-सफ़र के लम्हों से है आख़िर-ए-शब भी दूर बहुत इस बार सहर के लम्हों से