सकीना! जब कहानी ख़त्म होगी ख़ाक की तासीर बदलेगी ज़मीं शोला-ब-शोला खींच ली जाएगी उन तारीक कोनों में जिन्हें रौशन ज़माने सत्र-ए-मुस्तहकम के अंदर फ़ासलों में रख गए थे सकीना! जब बदन फ़र्श-ए-सितम पर दो क़दम चलने लगेगा अस्र-ए-बे-हंगाम से जीवन नई दुनियाओं के रस्ते निकालेगा म्यान-ए-आब-ओ-गिल किस को ख़बर क्या क्या निकल आए हमारे देखते अन-देखते क्या क्या बदल जाए हमारे साथ गिर्द-ओ-पेश जितनी सूरतें हैं सब फ़ना के रक़्स में हैं और ये रक़्स-ए-फ़ना अपना इरादा तो नहीं है बयाबानों की पैमाइश मिरे चाक-ए-गरेबाँ से ज़ियादा तो नहीं है!