अब वो घर के हर कोने से ड्राइंग-रूम के ऐश-ट्रे से किचन में कूड़े के डब्बे से जहाँ कहीं भी बुझी हुई माचिस की तीली मिल जाए चुनता रहता है और किसी तन्हा गोशे में माचिस की इक इक तीली को बारी बारी अपनी आँखों के आगे रखता है ऐसे में उस शख़्स की साँसें तेज़ तेज़ चलने लगती हैं आँखें शो'ला हो जाती हैं फिर वो माचिस की बुझी हुई हर इक तीली को ज़ोर ज़ोर से दाँतों से कुचला करता है और ऐसे में घर का कोई फ़र्द नज़र आ जाए तो पहले हँस देता है हँसते-हँसते रो पड़ता है देर देर तक ज़ार-ज़ार रोता रहता है