खेलते खेलते कोई बच्चा एक दिन इक कुएँ पे जा पहुँचा अपनी सूरत उसे नज़र आई झाँक कर उस ने उस में जब देखा कम-समझ और बेवक़ूफ़ था वो समझा कोई कुएँ में है बैठा डर के भागा वो अपने घर की तरफ़ राह में मिल गए उसे अब्बा बोला कोई कुएँ में बैठा है देख कर जिस को डर के मैं भागा अब्बा आए कुएँ पे ग़ुस्से में देख कर उस में अपना ही साया बोले झुँझला के क्यूँ मियाँ साहब दाढ़ी रख कर ये हरकत-ए-बेजा इक तो बच्चों को तुम डराते हो उस पे आँखें हमें दिखाते हो