अगर नहीं है कोई काम काम पैदा कर कहीं से ढूँढ के मीना-ओ-जाम पैदा कर न फँसना गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार में ज़िन्हार तू रोज़ एक नई सुब्ह-ओ-शाम पैदा कर तू हर तरह के सभी काम ले ग़ुलामों से ग़ुलाम गर नहीं मिलते ग़ुलाम पैदा कर दिलों में तीर की मानिंद जो उतर जाए तलाश कर के कुछ ऐसा कलाम पैदा कर सुना के नाम से अपने ख़ुद-ए'तिमादी से असातिज़ा की सफ़ों में मक़ाम पैदा कर तिरे इताब से डरते हैं जैसे घर वाले मुआ'शरे में भी ऐसा मक़ाम पैदा कर ज़माना आ के तिरे दर पे सर झुकाएगा किसी तरह से सियासत में नाम पैदा कर जो आरज़ी ही सही चंद राहतें ले कर ज़मीर बेच दें ऐसे अवाम पैदा कर रहेंगी दो से ज़ियादा भी जिस में तलवारें किसी तरह से इक ऐसी नियाम पैदा कर लगा के पान में खाए तो क़ौम सो जाए मिला के भंग नया इक क़िवाम पैदा कर तू चाहता है तिरी 'ख़्वाह-मख़ाह' शोहरत हो ख़ुदी को बेच अमीरी में नाम पैदा कर