सुनाऊँ मैं अपनी शुजाअ'त का क़िस्सा दिलेरी का क़िस्सा हिमाक़त का क़िस्सा मसहरी पे लेटा जो सोने की ख़ातिर हुआ एक मच्छर मिरे पास हाज़िर मुझे फ़िल्मी गाने सुनाने लगा वो मिरी नींद गा कर उड़ाने लगा वो कहा मैं ने मच्छर मियाँ रहने दो बस कहीं और गाओ मुझे सोने दो बस ये सुन कर वो इतना हुआ गर्म मुझ पर कि फ़ौरन ही चेहरे पे आया झपट कर मिरे गाल पे उस ने ज़ोरों से काटा कि तकलीफ़ से मैं बहुत तिलमिलाया दो-हत्थड़ जो मच्छर के ग़ुस्सा से मारा पकड़ कर मिरे पैर वो फिर पुकारा नहीं मारना इतना आसान मुझ को तिरा ख़ून पी कर ही छोड़ूँगा तुझ को ये कह कर मिरे पाँव पर काट खाया मैं इक बार फिर दर्द से तिलमिलाया कई हाथ मारे मगर वारे मच्छर लगा हँसने कमरे का चक्कर लगा कर ग़ुरूर उस का मुझ से न देखा गया जब मिरा ग़ुस्सा हद से सिवा हो गया जब तो मैं ने भी चुपके से हाकी उठा कर नज़र अपनी मच्छर की जानिब उठा कर घुमा कर ज़रा मैं ने हाकी जो मारी हुई जान मच्छर की अल्लाह को प्यारी