कठ-पुतली By Nazm << मच्छर से जंग ख़त-ए-राह-गुज़ार >> मेरे ख़्वाबों की पतंग मुझ से करती है अन-गिनत सवाल अक्सर रूठी रहती है मुझ से कभी आँखों से कभी नींदों से चाहती थी खुला आसमाँ ऊँची और ऊँची उड़ान पर पगली नादाँ वो क्या जाने डोर तो उस की है और किसी के हाथ ख़ुद तो वो सिर्फ़ कठ-पुतली है Share on: