ये धुँदलका ये बुझते दियों का धुआँ फूल से दिल पे ज़ख़्मों के गहरे निशाँ ये चमन ये बहारों का ख़ूनी कफ़न वस्ल की रात में जैसे बेवा दुल्हन आँचलों की ये उड़ती हुई धज्जियाँ नर्म होंटों पे सूखी हुई पपड़ियाँ कब तलक ये मुसीबत ये रंज-ओ-मेहन कब तलक तौक़-ओ-ज़ंजीर-ओ-दार-ओ-रसन नर्गिसी आँख इंसाँ की धँसती हुई हल्क़ में हर-नफ़स साँस फॅंसती हुई हम-नशीनों उठो मौत को टोक दो ज़ुल्म के आहनी हाथ को रोक दो