तूफ़ान थम चुका है मगर जागते रहो किस वक़्त की है किस को ख़बर जागते रहो ऐ ताज के ख़ुदाओ अजंता के ख़ालिक़ो चंगेज़ फिर चला है इधर जागते रहो शो'ले बुझा के हम-सफ़रो मुतमइन न हो पोशीदा राख में है शरर जागते रहो हर ज़र्रा-ए-चमन में है लाल-ओ-गुहर का रंग लुटने न पाएँ लाल-ओ-गुहर जागते रहो अब रात ख़ुद है अपनी सियाही से बे-क़रार आवाज़ दे रही है सहर जागते रहो अब रौशनी में भी है अंधेरे का मक्र-ओ-फ़न क्या ए'तिबार-ए-शाम-ओ-सहर जागते रहो