तू ने की तख़्लीक़ ऐ महव-ए-ख़िराम-ए-जुस्तुजू क़तरा-ए-ख़ून-ए-जिगर से काएनात-ए-रंग-ओ-बू अपनी दिल-सोज़ी से ज़र्रे को बनाया आफ़्ताब तू ने उल्टा रू-ए-मुस्तक़बिल से माज़ी का नक़ाब तेरी बेताबी नहीं आलूदा-ए-नाम-ओ-नूमूद ज़िंदगी को इक पयाम-ए-मुस्तक़िल तेरा वजूद वहम-ए-बातिल है तिरे एहसास को ख़्वाब-ए-गिराँ तेरे हर इक साँस की क़ीमत है उम्र-ए-जावेदाँ तेरी हर जुम्बिश में है राज़-ए-निज़ाम-ए-काएनात तेरी हर काविश से पाता है नुमू रंग-ए-हयात कार-गाह-ए-ज़िंदगी में तेरी फ़ितरत आबशार तेरी सीरत नहर-ए-शीरीं तेरी हिम्मत कोहसार फ़ैज़-ए-माह-ओ-माह तेरे जल्वा-ए-ईसार में सोज़-ओ-साज़-ए-आरज़ू तेरे दिल-ए-बेदार में हैं सुबूत-ए-जज़्बा-ए-ख़िदमत तिरे सीने के दाग़ फिर हुआ रौशन दकन में तुझ से उर्दू का चराग़ क्यूँ न इतराऊँ कि अब अपना दिलसिताँ खिल गया बू-ए-गुल आने लगी बाब-ए-गुलिस्ताँ खिल गया ज़र्रे ज़र्रे को दकन के दरख़ोर-ए-पैग़ाम कर ऐ परस्तार-ए-वतन अपने वतन का नाम कर