ज़िंदगी वो सफ़ेद फूल है जिसे एक दोस्त दूसरे दोस्त को पेश करता है और जब दुश्मन दोस्त बनना चाहे तो वो भी इस फूल को सूँघ लिया करता है ये सफ़ेद फूल हर घर में उगता है कहीं महक रहा है कहीं सूख गया है कहीं अभी कली के रूप में है और आँखें जो उसे देखती हैं एक दूसरे से कितनी मुख़्तलिफ़ हैं काली भूरी नीली आँखें जो बहते पानी की तरह इस सरहद से उस सरहद तक हर जगह मौजूद हैं जो ज़मीं देखती हैं फ़लक देखती हैं दरमियाँ देखती हैं जाने किस तरह इस फूल की सफ़ेदी पर मैले धब्बे और ख़ून के छींटे बर्दाश्त कर लेती हैं