मैं अब नया कोई हिंदिसा हूँ मैं और कोई हिंदिसा हूँ तुम्हारे पहलू में कल से अब तक जो इक ब-सूरत सिफ़र सिफ़र थी वो मैं नहीं थी जो तुझ में तेरे सफ़र की धुन थी जो ख़ुद मुसाफ़िर न हो के बस तेरी रहगुज़र थी वो मैं नहीं थी वो मैं नहीं हूँ जो अपने सीने की आग दे कर तिरे सुरों का सुहाग भर थी जो तेरी दुनिया का राग भर थी वो मैं नहीं थी सुनो तज़ब्ज़ुब की क़ैद पिघली मैं एक निश्चित उड़ान हूँ अब जो इक अनिश्चित, अगर मगर थी वो मैं नहीं थी वो मैं नहीं हूँ मैं अब नया कोई हादिसा हूँ मैं अब नई कोई इंतिहा हूँ चलो ये माना मैं सानेहा हूँ चलो ये सच है मैं इक सज़ा हूँ मगर जो अब तक तुम्हारे पहलू में इक ब-सूरत सिफ़र सिफ़र थी वो मैं नहीं थी वो मैं नहीं हूँ