जाओ जाओ मुझे नींद आई है सोने दो मुझे दिन गुज़र जाता है लफ़्ज़ों का तआ'क़ुब करते और जब रात को थक हार के गिर पड़ता हूँ तुम चले आते हो अख़बार लिए तुम को अब याद नहीं कल के अख़बार में भी थीं यही सारी ख़बरें बल्कि परसों से यही ख़बरें धड़ा-धड़ हर इक अख़बार में छपती हैं पढ़ी जाती हैं कल की ख़बरें भी लगे हाथ सुना डालो अभी फिर कहीं जा के मरो तुम भी मुझे सोने दो सुब्ह को फिर मुझे लफ़्ज़ों के तआ'क़ुब में निकलना होगा