गोरों ने मेरे देस पर अपना निज़ाम रख दिया एक ग़ुलाम उठा लिया एक ग़ुलाम रख दिया तुम ने ख़ुदा के घर में भी फ़ित्ना-ए-आम रख दिया मेरे इमाम की जगह अपना इमाम रख दिया उस ने तो मेरी याद को दिल में छुपाया इस तरह जैसे सुईस-बैंक में माल-ए-हराम रख दिया शीरीं-लबों को देख के मैं खा रहा था मैंगो उस ने जो होंट सी लिए मैं ने भी आम रख दिया घर में लुग़त न थी कोई जल्दी में उस के बाप ने बिन्त-ए-सियाह-फ़ाम का चाँदनी नाम रख दिया बैठी हुई है आज वो बालों की विग उतार कर गोया शराब फेंक कर मेज़ पे जाम रख दिया मुझ को बुला के घर में एक शायर-ए-बा-कमाल ने ताज़ा तआम की जगह ताज़ा कलाम रख दिया