फ़क़ीरी में भी ख़ुश-वक़्ती के कुछ सामान फ़राहम थे ख़यालों के बगूले मुज़्तरिब जज़्बों के हँगामे, तलातुम बहर-ए-हस्ती में तमव्वुज-ए-रूह के बन में, अजब उफ़्ताँ-ओ-ख़ैज़ाँ मरहले पहनाई शब के, तड़प ग़म-हा-ए-हिज्राँ की लरज़ती आरज़ू दीदार-ए-जानाँ की अदम-आबाद के सहरा में एक ज़र्रा कि मिस्ल-ए-क़तरा-ए-सीमाब लर्ज़ीदा सदफ़ में ज़ेहन के जूँ गौहर-ए-कामयाब पोशीदा दिल-ए-सद-पारा जू-ए-ग़म लरज़ती कश्ती-ए-एहसास जहाँ-बीनी का दिल में अज़्म-ए-दुज़्दीदा फ़क़ीरी में यही असबाब-ए-हस्ती था यही दर्द-ए-तह-ए-जाम-ए-तमन्ना था यही सामाँ बचा लेते तो अच्छा था फ़क़ीरी में मगर ये कौन सी उफ़्ताद आई है कि सामाँ लुट गया राहों में कासा दिल का ख़ाली है