मैं उर्दू ज़बाँ हूँ मुझे आरयाओं ने पाला मिरी अस्ल हिन्दोस्ताँ है कि मेरे लहू से ही वेदों की आयात लिक्खी गई हैं ये राम और सीता की अज़्मत के क़िस्से रमायन-कथाएँ कृष्ण और राधा के रंगीं फ़साने हर इक लफ़्ज़ की रूह नग़्मा-सरा है मैं उर्दू ज़बाँ हूँ वो गौतम कि जिस ने मोहब्बत की पैग़म्बरी से जहन्नम को जन्नत बनाया मगर किस ज़बाँ में ज़रा सोचिए किस ज़बाँ में वो पाली जो मेरे घराने की पाली हुई थी मैं उर्दू ज़बाँ हूँ मुझे देखना चाहते हो तो आओ अजंता एलोरा के ग़ारों में देखो ये मैं हूँ मिरा हुस्न मेरी कशिश है अबद तक मुझे देखना चाहते हो तो आओ अशोका की लॉटों में कंदा हुरूफ़-ए-मुक़द्दस में देखो ये मैं हूँ सदाक़त अदालत की तहरीर-ए-मोहकम मैं उर्दू ज़बाँ हूँ मोहब्बत की मन-मोहनी दास्ताँ हूँ मिरी वुसअ'तें बे-कराँ हैं ये उत्तर ये दक्खिन ये पूरब ये पच्छिम हर इक सम्त मेरे निशाँ हैं दकन जो कभी रंग-ओ-हर्फ़-ओ-अदा और चंग-ओ-सदा से बना एक क़ौस-ए-क़ुज़ह था तुम्हें कुछ ख़बर है वो क्या सिलसिला था मूअर्रिख़ से पूछो वो मेरा ही जादू मिरा मो'जिज़ा था मैं 'ख़ुसरव' की प्यारी 'वली' की नियारी 'क़ुली' की दुलारी ख़ुदा-ए-सुख़न 'मीर' के सोज़-ए-पिन्हाँ की मैं राज़दाँ हूँ वो दीवान-ए-ग़ालिब वो शहकार-ए-तख़लीक़-ए-आदम मगर उस का हर शे'र कहता है पैहम मैं उर्दू ज़बाँ हूँ वो 'इक़बाल' जो अज़्मत-ए-आदमिय्यत का पैग़ाम्बर है लहू के जुमूद और दिल के तग़ाफ़ुल का जो नौहागर है वो जिस की नज़र बाल-ए-जिब्रील की हम-सफ़र है वो जिस की सदा ख़्वाब-ए-ग़फ़लत में बद-मस्त इंसानियत के लिए एक बाँग-ए-दरा है वो जिस की ख़ुदी दौर-ए-हाज़िर की फ़िरऔनियत के लिए बह्र-ए-क़ुल्ज़ुम के साहिल पे ज़र्ब-ए-कलीमी की नेमुल-बदल है वो जिस ने दयार-ए-ग़ज़ल से लब-ओ-आरिज़-ओ-ज़ुल्फ जैसे अनासिर को बाहर निकाला वो 'इक़बाल' भी मेरी ज़ुल्फ़ों का क़ैदी रहा है मैं उर्दू ज़बाँ हूँ वो 'आज़ाद' आज़ादी-ए-हिंद का एक आशिक़ वो 'आज़ाद' जिस की फ़ुग़ाँ सोज़-ओ-मस्ती वो 'आज़ाद' जिस की सदा साज़-ए-हस्ती वो 'आज़ाद' जिस का सुख़न क़ौल-ए-फ़ैसल मगर क़ौल-ए-फ़ैसल का ये फ़ैसला है मैं उर्दू ज़बाँ हूँ मैं तारीख़-ओ-तहज़ीब-ए-हिन्दोस्ताँ हूँ मैं हिन्दोस्तानी हूँ रश्क-ए-जहाँ हूँ जहान-ए-मोहब्बत की मैं पासबाँ हूँ मगर पासबान-ए-वतन मुझ को ग़द्दार कहने लगे हैं तो ग़द्दार कहने का मतलब मुसलमाँ हूँ मैं भी मुसलमान या'नी कि दहशत जिहालत ग़लाज़त की पहचान हूँ मैं ये पहचान मेरी अजब सानेहा है मगर सानेहा मादर-ए-हिन्द का है ये मेरा नहीं है मैं कुछ भी नहीं हूँ मुझे आरयाओं ने पाला मिरी अस्ल हिन्दोस्ताँ है मैं हिन्दोस्तानी हूँ हिन्दोस्ताँ हूँ मगर मेरे अहल-ए-वतन मुझ को ग़द्दार कहने लगे हैं ब-ज़ाहिर तो है गरचे ये मेरी ज़िल्लत मगर अस्ल में मादर-ए-हिन्द की ही ये इस्मत-दरी है मैं उर्दू ज़बाँ हूँ मुझे आरयाओं ने पाला मिरी अस्ल हिन्दोस्ताँ है