मैं वफ़ा का सौदागर लुट के दश्त-ओ-सहरा से बस्तियों में आया हूँ ख़्वाब-हा-ए-अरमाँ हैं या कुछ अश्क के क़तरे ज़ेब-ए-तर्फ़-ए-मिज़्गाँ हैं जाने कब ढलक जाएँ तार तार पैराहन है लहू में तर लेकिन जामा-ज़ेबी-ए-उल्फ़त लाज तेरे हाथों है इक हुजूम आँखों का चीख़ते सवालों का हर जगह है इस्तादा मैं हयात का मुजरिम आरज़ू का मुल्ज़िम हूँ कोई वलवला हैजाँ कोई ज़ीस्त का अरमाँ कुछ नहीं मिरे दिल में ऐ हुजूम-ए-बे-पायाँ मैं दरीदा-पैराहन सच है तेरी बस्ती में नंग-ए-पारसाई हूँ वज्ह-ए-संग-सारी हूँ!
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