अपने अपने ग़मों ने हमें कैसा शाकी किया है मुझे अपने सेबों को कल शाम से पहले हर हाल में बेचना है कोई आएगा इंसाँ-नुमा साइकल पे घिसटता हुआ जिस की क़िस्मत की रेखाओं में मुस्तक़िल तीरगी है वो मेरा निशाना मिरे पेट ने जब उसूल-ओ-ज़वाबित का जामा उतारा क़वाएद को फिर अपने दिल की गली से निकाला मुझे क्या जो मस्जिद के मीनार पर अब मोहब्बत भरे फूल खिलते नहीं हैं सदा-ए-मुअज़्ज़िन की कमज़ोर दस्तक समाअ'त के दर पर खड़ी हाँफती है मुझे क्या मिरे घर का चूल्हा सवाली मिरा पेट ख़ाली मुझे अपने सेबों को हर हाल में बेचना है वो इंसाँ-नुमा साइकल पे घिसटता हुआ आ रहा है वो मेरा निशाना