शाम छत से घर में उतरी रात बन कर एक इक कमरे में फैली वक़्त को अपनी कलाई से उतारा और टेबल पर सजा कर मैं ने आज़ादी का लम्बा साँस खींचा याद और ख़्वाबों की पतवारें संभालीं कशती-ए-एहसास को बारीक और बद-रंग लहरों में उतारा सुब्ह तक इस कशती-ए-एहसास पर कर के ले आऊँगा सूरज को सवार और फिर मेरी कलाई वक़्त की पाबंद हो कर शाम तक अंजाम देगी कार-हा-ए-नागवार
This is a great सर्द रात शायरी. True lovers of shayari will love this ये शाम शायरी. Shayari is the most beautiful way to express yourself and this कमरा शायरी is truly a work of art. For some people shayari is the most enjoyable thing in life and they absolutely adore अपनी पहचान शायरी. You can click on the More button to get more शायरी रात की. Please share if you liked it.