कब कहाँ से चली थी पता नहीं जन्नत ने ठुकराया कि आदम ने पुकारा चारों ओर घना जंगल हर शाख़ हाथ बढ़ाते ही ख़ुद में सिमट जाती थी जाने कब बे-सत्र हुई किस ने शर्म-गाह की लाज रखी पाँव के नीचे अन-गिनत राहें बे-हिसाब नशेब ओ फ़राज़ दोनों तरफ़ सवाल ओ जवाब की अटूट ख़्वाहिशें इल्ज़ामात के तबादले की तैयारियाँ बरसहा-बरस की खोज का बस एक ही अंजाम फ़ाएला मफ़ऊल क़ुदरत फ़ितरत इसबात नफ़ी