अपनी सोई हुई दुनिया को जगा लूँ तो चलूँ अपने ग़म-ख़ाने में इक धूम मचा लूँ तो चलूँ और इक जाम-ए-मय-ए-तल्ख़ चढ़ा लूँ तो चलूँ अभी चलता हूँ ज़रा ख़ुद को सँभालूँ तो चलूँ जाने कब पी थी अभी तक है मय-ए-ग़म का ख़ुमार धुँदला धुँदला नज़र आता है जहान-ए-बेदार आँधियाँ चलती हैं दुनिया हुई जाती है ग़ुबार आँख तो मल लूँ ज़रा होश में आ लूँ तो चलूँ वो मिरा सेहर वो एजाज़ कहाँ है लाना मेरी खोई हुई आवाज़ कहाँ है लाना मिरा टूटा हुआ वो साज़ कहाँ है लाना इक ज़रा गीत भी इस साज़ पे गा लूँ तो चलूँ मैं थका हारा था इतने में जो आए बादल किसी मतवाले ने चुपके से बढ़ा दी बोतल उफ़ वो रंगीन पुर-असरार ख़यालों के महल ऐसे दो चार महल और बना लूँ तो चलूँ मुझ से कुछ कहने को आई है मिरे दिल की जलन क्या किया मैं ने ज़माने में नहीं जिस का चलन आँसुओ तुम ने तो बेकार भिगोया दामन अपने भीगे हुए दामन को सुखा लूँ तो चलूँ मेरी आँखों में अभी तक है मोहब्बत का ग़ुरूर मेरे होंटों को अभी तक है सदाक़त का ग़ुरूर मेरे माथे पे अभी तक है शराफ़त का ग़ुरूर ऐसे वहमों से ज़रा ख़ुद को निकालूँ तो चलूँ