इस तरह सताते हो दूरियाँ बढ़ाते हो दूरियाँ बढ़ाने से फ़ासले नहीं बढ़ते हौसले नहीं घटते मंज़िलों को पाने का अज़्म जो भी करता है वो क़दम बढ़ाता है चाँद छू के आता है तारे तोड़ लाता है थक के बैठ जाना तो मौत की अलामत है और मेरा ईमाँ है मौत तो यक़ीनी है वक़्त पर ही आएगी फिर मैं किस लिए आख़िर रोक लूँ क़दम अपने मौत के फ़रिश्ते को रू-ब-रू खड़ा पा कर