कोई काम नहीं करते हो सब को टाल दिया करते हो नेट से तुम चिपके रहते हो एस-एम-एस करते रहते हो इक रोज़े का कर के बहाना सारा दिन सोए रहते हो अपनी ज़िद पर अड़ जाते हो ज़रा सी बात पर लड़ पड़ते हो दादी जान बुलाती हैं तो उन की बात नहीं सुनते हो अस्र में तुम को नींद आती है इशा में तुम ग़ाएब रहते हो जिस दिन इफ़्तारी कुछ कम हो उस दिन तुम बिगड़े रहते हो रग़बत है बस इफ़्तारी से सहरी में कम ही उठते हो हुस्न-ए-खुल्क इबादत है नाँ इस पे ध्यान नहीं देते हो भूके प्यासे क्यूँ रहते हो रोज़े आख़िर क्यूँ रखते हो