मैं समुंदर किनारे आराम-कुर्सी पर धूप सेंक रहा था एक लड़की पानी से निकली थकी थकी सी सुस्ताने को बैठ गई न-जाने उस के दिल में क्या आया बाएँ पैर पर रेत जमा कर पैर बाहर निकाल घर बनाया मैं हैरत-ए-शौक़ से सब देखता रहा मुझे घर अच्छा लगा उस में दाख़िल हुआ और वो समुंदर वापस चली गई मीरा-जी अब 'इरुज' क्या करे