अपनी पुर-पेच बुलंद और धीमी कशीदा सुरों से ऊँचे फ़त्ह-नसीब हो तुम ख़ुश-नसीब हो तुम कि अपनी ज़िंदगी में सब मिला तुम को सब से बढ़ कर ये कि हम ने इज़्ज़त दी तुम्हें वर्ना हम ख़ैर छोड़ो अब जहाँ हो आज़ादी से आज़ाद सुर लगाना उसे कहना हम सिर्फ़ उस की आस पर ज़िंदा हैं उस के बनाए गीत फ़क़त उस के लिए गाते हैं कि शायद हमें भी ख़ुश-नसीब कर दे वो फ़त्ह-नसीब कर दे वो वर्ना हम ख़ैर छोड़ो