मेरे हाथों की लकीरें By Nazm << सिंफ़-ए-नाज़ुक कहा गया मु... कभी कभी >> क़िस्मत की रेखाएँ नहीं उन लम्हों के जुगनूँ हैं जो तुम्हारे संग गुज़ारे हैं शब-ए-तन्हाई में जब कभी नींद रस्ता भूल जाती है उन जुगनुओं से ही ख़्वाब अपनी मंज़िल पाते हैं Share on: